

रायगढ। धार्मिक,आध्यात्मिक एवं मानव सेवा युक्त संस्कारी स्वयं सिद्ध संत परम श्रद्धेय अघोर मूर्ति के प्रथम निर्वाण दिवस पर 19 जून को श्रद्धेय अघोर मूर्ति कर्मयोगी भइया जी के समाधी स्थल उत्तरप्रदेश प्रयागराज के चाका ब्लॉक डॉड़ी स्थित प्रेरणा परमार्थ आश्रम मे प्रतिमा स्थापित की गई।फूलों और रंगोली से सजे आकर्षक के शाला में वैदिक मंत्रोच्चार के साथ श्रद्धेय भइया जी की प्रतिमा का अनावरण कर स्थापना की गई। इस दौरान अवधूत बाबा प्रियदर्शी राम की विशेष उपस्थिति में प्रात:भइया जी के समाधि स्थल की पूजा अर्चना हवन आदि के बाद भइया जी की प्रतिमा का अनावरण एवं भजन कीर्तन के पश्चात हजारों की संख्या में उपस्थित श्रद्धालुओं के लिए पूर्वाह्न 11 बजे से भोजन प्रसादी का आयोजन अपराह्न देर तक चला।इस अवसर पर जहां तमाम अघोर आश्रम से जुड़े श्रद्धालुओं ने शिरकत की वहीं रायगढ़ से भी बाबा के अनुयायी,परम् भक्त,गोपीनाथ जीव मंदिर के संस्थापक,विद्वान स्वामी,बाल ब्रम्हचारी पं.बृजेश्वर मिश्र के अलावा सबसे बड़े पब्लिक ट्रांसपोर्टर प्रियदर्शी वासुदेव ट्रांसपोर्ट के संचालक घनश्याम सिंह,पूर्व विधायक विजय अग्रवाल,जगदीश अग्रवाल,अजय अग्रवाल,पंकज अग्रवाल,घनश्याम रतेरिया,सुनील मोदी,अमित मोदी, हरेराम तिवारी आदि शामिल हुए। इस दौरान भइया जी आनंद मूर्ति के जीवन वृत्त पर एक संगोष्ठी का आयोजन भी किया गया जिसे बनोरा अघोरपीठ के गुरु बाबा प्रियदर्शी राम ने संबोधित किया।इससे पूर्व अवधूत भगवान राम एवं भइया जी की छाया चित्र पर दीप प्रज्वलन व माल्यार्पण बलबीर सिंह ने किया।वहीं प्रियदर्शी बाबाजी के आगमन पर उनका माल्यार्पण से स्वागत निरंजन कुमार, मनोज सचान और दिनेश ने किया। मंगलाचरण डॉ.अमृत लाल समेत अन्य प्रबुद्ध जनों व आध्यात्मिक मर्मज्ञों ने भइया जी के विचारों को आत्मसात् किया।साथ ही भैयाजी के जीवन वृत्त पर आधारित एक लघुफिल्म परमार्थ प्रेरणा का भी प्रदर्शन किया गया। गुरुजी के सत्कर्मों पर लिखित पुस्तक का भी बाबा प्रियदर्शी के हाथों विमोचन किया गया।आनंद मूर्ति भइया जी के शिष्य रंजीत सिंह ने कहा कि श्रद्धेय भइया जी जैसे महान व्यक्तित्व समाज में एक विभूति थे जिन्होने मानवता और परमार्थ की राह दिखाई।तत्पश्चात प्रेरणा परमार्थ आश्रम के विषय में बाबा प्रियदर्शी राम ने कहा कि यह केवल आश्रम नहीं बल्कि मानव कल्याण का विद्यालय है।गुरु हमारे पथ प्रदर्शक हैं।उन्होंने अपने शिष्यों को जगाते हुए कहा कि “पूत सपूत तो क्यूं धन संचय।पूत कपूत तो क्यूं धन संचय”इसलिए अपनी आने वाली पीढ़ी को अच्छी शिक्षा और ऊंचे संस्कार प्रदान करो तभी परिवार मे सुखशांति का का अनुभव प्राप्त हो सकेगा।पूरे कार्यक्रम के दौरान आश्रम परिसर में हर -हर महादेव की गूंज होती रही।
पूरा जीवन पीड़ित मानवता की सेवा को समर्पित
झारखंड के पलामू जिले के रेहला गांव में जन्मे आनंद मूर्ति भइया जी तारकेश्वर सिंह और श्रीमती शकुंतला सिंह के 8 संतानों में चौथे पुत्र थे।बचपन से ही परिवार में एक आध्यात्मिक वातावरण रहा,इसी कारण परम श्रद्धेय अघोर मूर्ति का भी झुकाव एवं रुचि अघोरेश्वर अवधूत भगवान राम जी के प्रति होने लगी।ऐसा बताया जाता है कि बचपन में जब परम श्रद्धेय अघोर मूर्ति अपने परिवार के साथ वाराणसी स्थित अवधूत अघोरेश्वर भगवान राम जी के आश्रम में जाते थे तो अघोरेश्वर अक्सर उनको अपनी गोद में खिलाते थे।परम श्रद्धेय अघोर मूर्ति क्योंकि पूज्य अघोरेश्वर अवधूत भगवान राम जी के विचारों से एवं उनके सेवा कार्यों से बहुत प्रभावित थे,इसलिए उन्होंने अपनी जीवन-यात्रा एवं लक्ष्य के लिए इसी अघोर पथ का अनुगमन करने का निर्णय लिया।क्योंकि परम पूज्य अघोरेश्वर अवधूत भगवान् राम जी ने औघड़ तप से प्राप्त शक्तियों का समाज कल्याण के लिए सदुपयोग करने एवं औघड़ परम्परा को जन साधारण में स्वीकार्यता हेतु क्रांतिकारी योगदान दिया तथा समाज में व्याप्त अनेकों कुरीतियों के विरुद्ध अभूतपूर्व जन-जागरण किया।यह विचार एवं पथ परम श्रद्धेय अघोर मूर्ति के मन-मस्तिष्क एवं आत्मा की गहराइयों में अंकित हो गया।परम श्रद्धेय अघोर मूर्ति ने सर्वेश्वरी समूह के आश्रम में अपनी सेवाएं सदैव आवश्यतानुसार दीं।संतश्री ने प्रयागराज में महाकुंभ से लेकर सामान्य जीवन में भी गरीबों और जरुरतमंदों की भरपूर सेवा की। उनकी 21 सूत्रीय प्रेरणा हजारों लाखों लोगों को जीवन दान दे रही।अंत मे बहुत ही सुंदर आश्रम निर्माण के लिए आर्किटेक्ट निरंजन वर्मा और हर्षित वर्मा को प्रियदर्शी बाबा ने स्वयं अपने हाथों से पुरस्कृत किया।मंच संचालन विनोद पांडेय तथा आभार प्रदर्शन रोहित मिश्रा ने किया।इस अवसर पर देश भर से अघोर आश्रम से जुड़े लोग बड़ी संख्या मे श्रद्धालु महिला पुरुष शामिल हुए।



