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मंदिर के गर्भगृह से निकलकर भक्तों को दर्शन देने निकले महाप्रभु,रथारूढ़ त्रिदेव की एक झलक पाने दिखा धार्मिक आस्था और संस्कृति का अद्वितीय संगम

रायगढ़ कला और संस्कार धानी नगरी रायगढ़ में रथयात्रा पर धार्मिक आस्था और संस्कृति का अद्वितीय संगम दिखा। महाप्रभु को बलभद्र भाई और सुभद्रा बहन के संग मंदिर के गर्भगृह से निकलकर रथारूढ़ होने की रियासतकालीन परंपरा के साक्षी बनने के लिए भक्तों का सैलाब उमड़ा रहा। आषाढ़ शुक्ल द्वितीया की शाम शुभ लग्न में राजपरिवार के नन्हे सदस्य द्वारा छेरापहरा का रस्म निभाते ही रथ में विराजमान हुए त्रिदेव की महाआरती हुई।चूंकि,रायगढ़ ओड़िशा सीमा से जुड़ा है,ऐसे में यहां रथयात्रा की समृद्धशाली कहानी भी अनूठी है। अंग्रेजी हुकूमत के पहले राजशाही जमाने से मोतीमहल के करीब रथमेला लगता है। कालांतर में उत्कल समाज के साथ चांदनी चौक,सोनार पारा और गांजा चौक के उत्साही युवकों की टोली भी सार्वजनिक रथोत्सव समिति बनाते हुए रथयात्रा की रौनकता में चार चांद लगाते हैं।आषाढ़ शुक्ल द्वितीया यानी 26 जून की शाम भगवान जगन्नाथ (श्रीकृष्ण),उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा को भव्य एवं आकर्षक वस्त्रों में सजाकर मंदिर के गर्भगृह से निकालते हुए पारंपरिक रथों में गगनभेदी जयकारों के बीच विराजमान किया गया। मंत्रोच्चार,शंखध्वनि और श्रद्धालुओं के जयकारों के बीच देव विग्रहों को रथों पर विराजित कर राजा पारा से चांदनी चौक तक भ्रमण कराया गया।राजापारा में मोतीमहल प्रांगण में उत्कल समिति के रथ को घेरा लगाते हुए जनदर्शन के लिए खड़ा कर दिया गया। वहीं, गांजा चौक के छत्तीसगढ़ सांस्कृतिक मंच और सोनार पारा के प्रगति कला मंदिर के रथों को रस्सी के सहारे खींचकर चांदनी चौक लाया गया और वहां एक साथ तीनों सार्वजनिक समितियों के रथों के स्पर्श करने की रस्म पूरी की गई। राजा पारा में मोतीमहल के करीब मेला भी लगा रहा,जहां बच्चों से लेकर बड़ों ने भी जमकर लुत्फ उठाया।
पुलिस और जिला प्रशासन ने इस बार रथयात्रा के दौरान सुरक्षा और यातायात व्यवस्था को लेकर विशेष प्रबंध किए हैं। चूंकि, रियासतकालीन रथयात्रा के दौरान राजापारा से लेकर गांजा चौक तक यानी पुरानी बस्ती में अंचलभर के हजारों लोग भक्त शामिल होकर रथारूढ़ त्रिदेव का दर्शन लाभ लेते हैं। ऐसे में सुरक्षा बलों की तैनाती,सीसीटीवी निगरानी,ट्रैफिक डायवर्जन और आपातकालीन सेवाओं की तैनातगी भी सुनिश्चित की गई ताकि किसी भी प्रकार की अप्रिय स्थिति निर्मित न हो सके।कल जाएंगे गुंडिचा मौसी के घरआषाढ़ शुक्ल द्वितीया की रातभर रथ में विराजमान भगवान जगन्नाथ, बलभद्र भाई और सुभद्रा बहन कल यानी 28 जून की शाम भव्य जुलूस और तामझाम के संग हरिबोल के जयघोष नारे के बीच अपनी गुंडिचा मौसी के घर जाएंगे। ननिहाल में हफ्तेभर रहने के बाद महाप्रभु की आषाढ़ शुक्ल दशमी की रात मंदिर वापसी होगी।

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